पौष महीना की वदी, ग्यारस तिथी महान,अश्वसेन के अंगने, जन्मे श्री भगवान ॥झूल रहा पलने में वामा दुलारा, लागे है ऐसे जैसे चाँद, ही जमीं पे, हो उतारा,दर्शनों को देवों की भीड़ है अपारा ।सीप से जैसे मोती उपजे, उज्जवल जन-मनहारी ।दीप से जैसे ज्योति उपजे, त्रिभुवन का तमहारीवामा-माँ की कोख से उपजा, जगत का सहारा ॥१... लागे॥खुशियों का चहुं-दिश में फैला, आलम सजा बनारस ।सर्प चिन्ह-युत कदली-दल सम काया धारे पारस ।हर्षित होके सहस नेत्र कर इन्द्र ने निहारा ॥२... लागे॥पुत्र छवि को निरख-निरख कर, हर्षित वामा माता ।अश्वसेन घर जन्म महोत्सव, लख जग-आनंद भाता ॥बालक सबको दिखलाएगा, भव का ये किनारा ॥३... लागे॥