आओ नी आओ नी भविजन…आओ नी आओ नी भविजनसिद्धक्षेत्र के तले, सिद्धप्रभु से मिलें…निज अनुभव रस पान करें।आओ नी आओ नी भविजन ॥मधुवन की पावन वसुधा से…२ मंगल आमन्त्रण आया…२सिद्धों के संग मिल जाने को…२ भव्यों को है बुलवाया… २खण्ड अष्टकर्म के बंधन छूटे… २भव भव से निज अनुभव रस पान करें… ॥१॥मंगलकारी प्रभुकल्याणक, भव्यों के कल्याण स्वरूपजिन दर्शन है उनका सच्चा, प्रभु सम जो देखे निज रूपचिरभावी तब मोह पलाय…पल भर में निज अनुभव रस पान करें ॥२॥यदि दुख से परिमुक्ति चाहो, तो श्रामण्य स्वीकार करों…२इन्द्रिय सुख तो सदा दुखमय, अब इनका परिहार करो… २भव सागर से पार चलो अब क्षण भर में निज अनुभव रस पान करें ॥३॥