श्री अरिहंत सदा मंगलमय मुक्तिमार्ग का करें प्रकाश । मंगलमय श्री सिद्ध प्रभु जो निज स्वरूप में करें विलास । शुद्धात्म के मंगल साधक साधु पुरुष की सदा शरण हो । धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ॥१॥
मंगलमय चैतन्य स्वरों में परिणति की मंगलमय लय हो । पुण्य पाप की दुखमय ज्वाला निज आश्रय से त्वरित विलय हो। देव शास्त्र गुरु को वंदन कर मुक्तिवधू का त्वरित वरण हो । धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ॥२॥
मंगलमय पांचों कल्याणक मंगलमय जिनका जीवन है । मंगलमय वाणी कल्याणी शाश्वत सुख की भव्य सदन है । मंगलमय सतधर्म तीर्थ कर्ता की मुझको सदा शरण हो । धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ॥३॥
सम्यग्दर्शन ज्ञान चरणमय मुक्तिमार्ग मंगल दायक है । सर्व पाप माल का क्षय कर के शाश्वत सुख का उत्पादक है । मंगल गुण पर्यायमयी चैतन्यराज की सदा शरण हो । धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ॥४॥