म्हारा पंच प्रभु भगवान, सुहावनो रे ।थारी वीतराग जिनमुद्रा, मन भावनो रे ॥टेक॥म्हारा अरिहंत प्रभुवर प्यारा, जग को मुक्तिमार्ग दिखलावे ।प्रभु की सौम्य छवि मनभावन, हमको वस्तु स्वरूप दिखावे ।प्रभु ने रत्नत्रय प्रगटायो, सुखकारणो रे ॥म्हारा...१॥सर्वकर्मों से विरहित प्रभुवर, शाश्वत सिद्ध परमपद पायो ।अविनाशी अविचल सुखरूपी, भव्यों के आदर्श सदा हो ।भोगें सुःख अनंतानंत, आनंदकारणो रे ॥म्हारा...२॥साधु संघ के अनुशासक, आचारज विज्ञानी ध्यानी ।निर्मल आचारज के धारी, मुनिवर पथ के हैं अनुगामी ।पंचाचार धारी मुनिवर, हितकारणो रे ॥म्हारा...३॥श्रुत आगम के बहु अभ्यासी, स्वयं पढ़ें हैं और पढ़ावें ।ज्ञानादिक स्वभाव आराधक, ध्रुव ज्ञायक के गीत सुनावें ।विषयों की न चाह है जिनके, मंगलकारणो रे ॥म्हारा...४॥मुनिवर सकलवृति बड़भागी, भव-भोगों से सदा विरागी ।चलते फिरते सिद्धों-से मुनि, परिणति अनुभव रस नित पागी ।बहती उपशम रस की धारा, सुखकारणो रे ॥म्हारा...५॥