अब प्रभु चरण छोड़ कित जाऊँ। ऐसी निर्मल बुद्धि प्रभु दो, शुद्धातम को ध्याऊँ। अब... ॥ टेक।सुर नर पशु नारक दुख भोगे, कब तक तुम्हें सुनाऊँ। बैरी मोह महा दुःख देवे, कैसे याहि भगाऊँ॥ अब... ॥१॥सम्यग्दर्शन की निधि दे दो, कैसे याहि मिटाऊँ। सिद्ध स्वपद को प्राप्त करूं मैं, परम शान्त रस पाऊँ। अब... ॥२॥भेदज्ञान का वैभव पाऊँ, निज के ही गुण गाऊँ। तुम प्रसाद से वीतराग प्रभु, भवसागर तर जाऊँ। अब... ॥३॥