अब हम अमर भये न मरेंगे ॥तन कारन मिथ्यात दियो तज, क्यों कर देह धरेंगे ॥टेक॥उपजै मरै कालतें प्रानी, तातै काल हरेंगे ।राग-द्वेष जग-बंध करत हैं, इनको नाश करेंगे ॥अब हम अमर भये न मरेंगे ॥१॥देह विनाशी मैं अविनाशी, भेदज्ञान पकरेंगे ।नासी जासी हम थिरवासी, चोखे हो निखरेंगे ॥अब हम अमर भये न मरेंगे ॥२॥मरे अनन्ती बार बिन समुझै, अब सब दुःख बिसरेंगे ।'द्यानत' निपट निकट दो अक्षर, बिन-सुमरे सुमरेंगे ॥अब हम अमर भये न मरेंगे ॥३॥