आओ रे आओ रे ज्ञानानंद की डगरिया,तुम आओ रे आओ, गुण गाओ रे गाओ,चेतन रसिया, आनंद रसिया ॥ टेक॥बडा अचंभा होता है, क्यों अपने से अनजान रे,पर्यायों के पार देख ले, आप स्वयं भगवान रे ॥१॥दर्शन ज्ञान स्वभाव में, नहीं ज्ञेय का लेश रे,निज में निज को जानकर, तजो ज्ञेय का वेश रे ॥२॥मैं ज्ञायक मैं ज्ञान हूं, मैं ध्याता मैं ध्येय रे,ध्यान ध्येय में लीन हो, निज ही निज का ज्ञेय रे ॥३॥