आतम अनुभव करना रे भाई
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राग : असावरी
आतम अनुभव करना रे भाई
जब लौ भेद-ज्ञान नहीं उपजे, जनम मरण दुःख भरना रे ॥टेक॥
आतम पढ़ नव तत्त्व बखाने, व्रत तप संजम धरना रे
आतम ज्ञान बिना नहीं कारज, योनी संकट परना रे ॥१॥
सकल ग्रन्थ दीपक है भाई मिथ्यातम के हरना रे
का करे ते अंग पुरुष को जिन्हें उपजना मरना रे ॥२॥
द्यानत जे भवि सुख चाहत है तिनको यह अनुसरना रे
'सो sहं' ये दो अक्षर जप भवजल पार उतरना रे ॥३॥