आ तुझे अंतर में शांति मिलेगीसुख कली खिलेगी की पर में कहीं शांति नहींशुद्धात्म को निरखले सब भ्रान्ति टलेगीसुख कली खिलेगी कि पर में कहीं शांति नहीं ॥१॥इच्छा के दास अब कभी नहीं बननाभूल ये अनादि की कभी नहीं करनाद्रव्य-दृष्टि से ही ज्ञान ज्योति जलेगीसुख कली खिलेगी कि पर में कहीं शांति नहीं ॥२॥क्यों विकल्प करता पर्याय नाशवान हैतू स्वयं गुणधाम तुझमें ध्रुवधाम हैलीन हो स्वयं में तुझे मुक्ति मिलेगीसुख कली खिलेगी कि पर में कहीं शांति नहीं ॥३॥