इस नगरी में किस विधि रहना, नित उठ तलब जगाओ री सेना ॥टेक॥एक कूओं पांचों पनिहारी, एक ही डोर भरे सब न्यारी ॥१॥सुस गया नीर, निपट गया पानी,बिलख रही पांचों पनिहारी ॥२॥सोना का महल, रूपा का छाजा,छोड़ चल्यो काया नगरी का राजा ॥३॥बालू की रेत, फूस की टाटी,उड गया हंस, पड़ी रह गई माटी ॥४॥इस नगरी का दस दरवाजा,पांचों ही चोर छ्ठो मन राजा ॥५॥'घासी' को राम, शहर का मेला,उड गया हाकम लद गया डेरा ॥६॥इस नगरी में किस विधि रहना,नित उठ तलब जगाओ री सेना ॥