ओ जाननहारे, जान जगत है असार ।तीन लोक अरु तीन काल में शुद्धातम इक सार ॥टेक॥पुद् अरु गल स्वभाव से ही ये परमाणु परिणमते ।बंधते बिखरते क्षण क्षण में, अरु दिखते एकाकार ॥ओ जाननहारे, जान जगत है असार ॥१॥मनोहर अरु अमनोहर वस्तु विध-विध रूप बदलते ।हर्ष विषाद करे जीव मिथ्या अज्ञानता अपार ॥ओ जाननहारे, जान जगत है असार ॥२॥चेतन दर्पण निज रस से ही तन धन प्रकाशित करता ।भेदज्ञान बिन निज को भूला, महिमा जड़ की अपार ॥ओ जाननहारे, जान जगत है असार ॥३॥मैं इक चेतन सदा अरूपी, परमाणु सब न्यारे ।इमि जानि जड़ महिमा तज, ध्या निज चेतन शिवकार ॥ओ जाननहारे, जान जगत है असारतीन लोक अरु तीन काल में शुद्धातम इक सार ॥४॥