चेतन को मिला जब नर तन तो, फिर होश में आना भूल गयाइस हाट में बारा बाट हुआ, निज हाट में आना भूल गया ।।टेक।।इस भूल में इतना फूल गया, कि ब्याज के बदले मूल गया।ममता ठगनी ने ऐसा ठगा, कि अपना विराना भूल गया ||1||स्वारथ सिद्धि का मंत्र बना, कहने को तू सरपंच बना।निज का भी जरा न रंच बना, कर्तव्य निभाना भूल गया ||2||फिरता तू तीरंदाज़ बना, निज लक्ष का कुछ भी ध्यान नहींतू कैसे तीर चलाएगा, जब पहले निशाना भूल गया ||3||अविरत, कषाय अरु योगों से, दिन रात जो पाप के बंध किए।नरकों में ऐसी मार सही, जो गुजरा जमाना भूल गया ||4||हीरा पन्ना माणिक मोती, ये सब जड़ की हैं पर्यायें ।कंकड़ पत्थर पर मुग्ध हुवा, आतम का खज़ाना भूल गया ||5||