चेतन है तू, ध्रुव ज्ञायक है तूअनन्त शक्ति का धारक है तू ॥सिद्धों का लघुनन्दन कहा, मुक्तिपुरी का नायक है तू ॥चार कषायें, दुःख से भरी, तू इनसे दूर रहे,पापों में, जावे न मन, दृष्टि निज में ही रहे ।चलो चलें अब मुक्ति की ओर, पञ्चम गति के लायक है तू ॥२॥श्री जिनवर से राह मिली, उस पर सदा चलना,माँ जिनवाणी शरण सदा, बात हृदय रखना ।मुनिराजों संग केलि करे, मुक्ति वधु का नायक है तू ॥३॥