ज्ञानमय ओ चेतन, तुझे जग से क्या काम?मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥टेक॥पल-पल की भूल तुझे पल-पल रुलाये,भव-भव में भटका के दु:ख ही दुःख दिलाये ।सद्गुरु की वाणी को सुनो आतमराम ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥१॥इस जग में तेरा कोई नहीं है सहारा ।कर ममत्व पर से, दु:ख पाया अपारा ।फिर भी तू करता क्यों, उन्हीं में मुकाम ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥२॥बाहर में तेरा कोई नहीं है सहारा ।तुझमें अत्यन्त अभाव सबका अपारा ।फिर भी तू माने उन्हें निज से महान ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥३॥चेतन स्वयं तू ही सुख का निधान है ।दुःख का कारण तुझे तेरा अज्ञान है ।'मैं तो प्रभु सुखमय हूँ', ऐसा कर ध्यान ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥४॥सोच तज केवल पर्याय ही समल हैं ।दिव्य अन्तस्तत्व निज आत्मा अमल है ।भव्य अब तो आश्रय ले, ध्रुव का विराम ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥५॥मुक्ति को पाने का हरदम यतन हो ।मुक्तिरूप प्रभुता की प्रतिक्षण लगन हो ।शीघ्र ही मिलेगा तुझे, शाश्वत शिवधाम ॥मुक्ति तेरी मंजिल है, ध्रुव तेरा धाम ॥६॥