तन पिंजरे के अन्दर बैठा आतमराम कहेपिंजरा दिन दिन होत पुराना पंछी वही रहे ॥इस पिंजरे के नौ दरवाजे न सांकल ना तालाखुले हुए पिंजरे में रहता पंछी उड़ने वालापिंजरा जन्मे पिंजरा पनपे पिंजरा जरे बहे ॥१॥ना जाने कितने युग से है पिंजरे पंछी का नातापञ्च तत्त्व से निर्मित पिंजरा बिखर बिखर जुड़ जाताहानि लाभ सुख दुःख पिंजरे का पंछी आप सहे ॥२॥लाख चौरासी भाँती के पिंजरे पंछी सब एक जैसेज्ञानी सोचे इस पिंजरे से मुक्ति मिलती कैसेपिंजरा पंछी भिन्न जानने से ही मुक्ति मिलती ॥३॥