तू निश्चय से भगवान, दृष्टि में समता धर ले रे ।तुझे तेरी नहीं रे पहचान, कि तू तो है अनंत सुख की खान,मोह तज दे रे भोले ॥टेक॥मन नहीं तू, वचन नहीं तू, पाँच रीति न तू काया ।जीवस्थान न, गुणस्थान तू, कर्म उदय का न मारा रे ।तेरा लोक-शिखर है स्थान, करले रे अपने से पहचान,मोह तज दे रे भोले,तू निश्चय से भगवान, दृष्टि में समता धर ले रे ॥१॥रस न रूप न गंध तेरे में, चेतनता तेरी काया ।शब्द और स्पर्श रहित तू, सर्व द्रव्य से न्यारा रे ।तेरा नियत न कोई संस्थान, न ही तेरी लिंग से पहचान, मोह तज दे रे भोले,तू निश्चय से भगवान, दृष्टि में समता धर ले रे ॥२॥पर द्रव्यों का कर्ता नहीं तू, न उनका तू भोक्ता ।परमारथ से अबद्ध है तू, कर्मों से तू अछूता रे ।उपयोग तेरी पहचान, प्रकट करले रे तू केवलज्ञान,मोह तज दे रे भोले,तू निश्चय से भगवान, दृष्टि में समता धर ले रे ।तुझे तेरी नहीं रे पहचान, कि तू तो है अनंत सुख की खान,मोह तज दे रे भोले ॥३॥