तोरी पल पल निरखें मूरतियाँ,आतम रस भीनी यह सूरतियाँ ॥टेर॥घोर मिथ्यात्व रत हो तुम्हें छोड़कर,भोग भोगे हैं जड़ से लगन जोड़कर ।चारों गति में भ्रमण, कर कर जामन मरण,लखि अपनी न सच्ची सूरतियाँ ॥१॥तेरे दर्शन से ज्योति जगी ज्ञान की,पथ पकड़ी है हमने स्वकल्याण की ।पद तुझसा महान, लगा आतम का ध्यान,पावे `सौभाग्य' पावन शिव गतियाँ ॥२॥