मैं ऐसा देहरा बनाऊं, ताकै तीन रतन मुक्ता लगाऊं ॥टेक॥निज प्रदेस की भीत रचाऊं, समता कली धुलाऊं ।चिदानंदकी मूरति थापूं, लखिलखि आनंद पाऊं ॥मैं ऐसा देहरा बनाऊं ॥1॥कर्म किजोड़ा तुरत बुहारूं, चादर दया बिछाऊं ।क्षमा द्रव्यसौं पूजा करिकै, अजपा गान गवाऊं ॥मैं ऐसा देहरा बनाऊं ॥2॥अनहद बाजे बजे अनौखे, और कछू नहिं चाऊं ।'बुधजन' यामैं बसौ निरंतर, याही वर मैं पाऊं ॥मैं ऐसा देहरा बनाऊं ॥3॥देहरा : मंदिर