मैं ज्ञान मात्र बस ज्ञायक हूँ आनंदमयी बस ज्ञायक हूँ ज्ञान में ही बस रमेंगे, मुक्ति पाने के लिए मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए आत्मा ही ज्ञेय है बस, आत्मा ही ज्ञान है २ चाह कुछ बाकी नहीं है, मुक्ति पाने के लिए मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए ज्ञेय जैसा ज्ञान होता, ज्ञान ज्ञेयाकार है किन्तु वह परमार्थ से ही, ज्ञान का आकार है ज्ञान को ही ज्ञान जाने, मुक्ति पाने के लिए मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए विषय सुख अब नहीं है भाते, ज्ञेय की वांछा नहीं स्वर्ग की भी कामना मन, में सुहाती है नहीं स्वर्ग में ही स्वयं की सृष्टि, को रचाने के लिए मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए ज्ञान में ही बस रमेंगे, मुक्ति पाने के लिए मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए