ये सर्वसृष्टि है नाट्यशाला, ये कर्म अभिनव दिखा रहा है ।मनुष्य जीवन का बना के नाटक, मनुष्य को ही नचा रहा है ॥टेक॥छहों ऋतु और चारों गति में, बने है जिनके ये दृश्य सारे ।जनम मरण की लगाई फेरी, जो आ रहा है वो जा रहा है ॥ये...१॥कभी उदासी कभी विलासी, कभी है डाकू कभी है साधु ।किसी का जीवन बिगड़ रहा है, किसी का जीवन सुधर रहा है ॥ये...२॥हँसाये सुख के सुना के गाने, रुलाये दुख के सुना के गाने ।मगर ये कोई नही समझता, कि कर्म गति ये बहा रहा है ॥ये...३॥विचित्र नाटक है जिंदगी का, विचित्र है इसके दृश्य तीन ।बना के नाटक अवस्थाओं का, उमर का पर्दा गिरा रहा है ॥ये...४॥