समझ मन स्वारथ का संसार ॥टेक॥हरे वृक्ष पर पक्षी बैठा, गावे राग मल्हार ।सूखा वृक्ष गयो उड पक्षी, तजकर उनमें प्यार ॥समझ मन स्वारथ का संसार ॥१॥बैल वही मालिक घर आवत, तावत बांधो द्वार ।वृद्ध भयो तब नेह न कीन्हो, दीनो तुरत बिसार ॥ समझ मन स्वारथ का संसार ॥२॥पुत्र कमाऊ सब घर चाहे, पानी पीवे वार । भयो नखट्टू दुर दुर पर पर, होवत बारंबार ॥ समझ मन स्वारथ का संसार ॥३॥ताल पाल पर डेरा कीनो, सारस नीर निहार ।सूखा नीर ताल को तज गए, उड गए पंख पसार ॥समझ मन स्वारथ का संसार ॥४॥जब तक स्वारथ सधे तभी तक, अपना सब परिवार ।नातर बात न पूछे कोई, सब बिछड़े संग छार ॥समझ मन स्वारथ का संसार ॥५॥स्वारथ तज जिनगृह परमारथ, किया जगत उपकार ।'ज्योति' ऐसे अमर देव के, गुण चिंते हर बार ॥ समझ मन स्वारथ का संसार ॥६॥