सिद्धों से मिलने का मार्ग ध्यान है ।निज में ही समाने का मार्ग ध्यान है ॥टेक॥अक्षय प्रभुता से सम्पन्न, मैं निरावरण हूँ सदानिज दर्शन का झरना देखूँ, स्वत: ही झर रहा ।अपने से अपनेपन का, मार्ग ध्यान है ध्यान मार्ग से ही फिर होता केवलज्ञान है सिद्धों से मिलने का मार्ग ध्यान है ।निज में ही समाने का मार्ग ध्यान है ॥1॥अन्तरंग में तत्त्व का, जब ऐसा बंधा समां ।मैं ज्ञायक भगवान हूँ, बस ऐसा मुझे लगा ॥जाननहार जना रहा, बस एक ही काम है ।चिदस्वरूप सम्राट हूँ, हाँ यही श्रद्धान है ॥सिद्धों से मिलने का मार्ग ध्यान है ।निज में ही समाने का मार्ग ध्यान है ॥2॥सुख सागर लहराता अब तो अंतर में मेरे ।अंतर में नहीं समाता अब तो बाहर में झलके ॥रहना मुझको निष्क्रिय अविनश्वर और ज्ञाता है ।भीगूँ उपशम रस में, अब यही सुहाता है ।सिद्धों के सम बन जाना बस एक ही काम है ॥निज में ही समाने का मार्ग ध्यान है ॥3॥सिद्धालय दिखता है, अब सर्वांग में मुझको,मुक्त स्वरूप भासित होता, हर पल हर क्षण यों ॥सिद्धों ने बुलाया मुझको अपने पास है उनका यह निमंत्रण यह मुझको, हाँ स्वीकार है ।सिद्धों से मिलने का मार्ग ध्यान है ।निज में ही समाने का मार्ग ध्यान है ॥4॥