समकित से कब निज चेतन का श्रंगार करोगे संयम की तरणी ले कब भव-जल पार करोगे सुन चेतन ज्ञानी, क्यों बात न मानी ॥टेक॥
आया कहाँ से जाना तुझे, कितनी दूर है । सोचा नहीं विषयों में तू क्यों, इतना चूर है ॥ जप-तप बिन नरभव के पल, बेकार करोगे ॥ संयम की तरणी ले कब भव-जल पार करोगे ॥१॥
लगते हैं तुझको भोग के, साधन जो सुहाने । लुटवाता है इन गलियों में, सद्गुण के खजाने ॥ ऐसी गलती जीवन में, कितनी बार करोगे ? ॥ संयम की तरणी ले कब भव-जल पार करोगे ॥२॥
कल्याण यदि चाहो तो, आतम को जान लो । अपने का और पराये का, अंतर पहचान लो ॥ जड़ कर्मों की बोलो कब तक, बेगार करोगे ॥ संयम की तरणी ले कब भव-जल पार करोगे ॥३॥
पग-पग पर भूल-भुलैया है ये, दुनिया की राहें । पथ-भ्रष्ट बनाती तुझको कंचन, कामिनी की चाहें ॥ बदनाम पथिक होंगे यदि जग की, धार गहोगे ॥ संयम की तरणी ले कब भव-जल पार करोगे ॥४॥