सुन रे जिया चिरकाल गया, तूने छोडा ना अब तक प्रमाद, जीवन थोडा रहा ॥जिनवाणी कहती है तेरी कथा, तूने भूल करी सही भारी व्यथा ।अब कर ले स्वयं की पहचान, जीवन थोडा रहा ॥जीव तत्व है तू परम उपादेय, अजीव सभी हैं ज्ञान के ज्ञेय ।निज को निज पर को पर जान, जीवन थोडा रहा ॥आस्रव बंध ये भाव विकारी, चेतन ने पाया दुख इनसे भारी ।सम्यक्त्व को ले पहिचान, जीवन थोडा रहा ॥संवर निर्जरा शुद्ध भाव है, मोक्ष तत्व पूर्ण बंध अभाव है ।इनको ही तू हित रूप मान, जीवन थोडा रहा ॥