सुन सतगुरु की सीख सयाना धरा रहे धन मालहोय तेरी राख़ मसाना रे, मत कर गर्व दीवाना ॥टेक॥सनत कंवर जी की सुंदर काया, इंद्र रूप देखन को आया ।गर्व किया उस वक्त दिवाना,पीकदनी में थूकज कीड़ा देख डराना रे ॥मत...१॥नगर द्वारका देखन आए, छ्प्पन करोड़ यादव कहलाए ।कृष्ण मावली सूरत पाई,भस्म होय छिन माही, देखत सबक मठाना रे ॥मत...२॥सोने की लङ्क समुद्र सी खाई, विभीषण कुम्भकर्ण सा भाई ।तीन खण्ड में आन बनाई, बदी करी जब रावण लक्ष्मण हाथ मराना रे ॥मत...३॥वीर रूद्र उपसर्ग कराए, हरिश्चंद्र राजा बहु दुख पाए ।नीच कौम से मांग रु खाए, सब मांगे सुभौम चक्री, ज्यों जलद बखाना रे ॥मत...४॥अत्र जगत बिच बादल छाया, इंद्रजाल सपने की माया ।शांत बोल मत गर्व रे भैया,ताक रहो जब जीव चढ़ा पर काल सिराना रे ॥मत...५॥कोड कपट कर क्या धन जोड़ा, रात दिवस धंधा कौ दौड़ा ।मत छकिया तृष्णा नहीं तोड़ी,मलकर ममता आप मरा, पीछे माल बिराना रे ॥मत...६॥मात पिता तिरिया सुत नाती, मतलब का सब मिल्या सगाती ।परभव जाता कोई है न साथी,दान शील तप भाव को ले लो लार खजाना रे ॥मत...७॥क्रोध मान माया लोभ न करना, मरण वचन मुख से नहीं कहना ।कहना प्रेम सहित, अनुभव कर लेना,बलिहारी 'श्री कृष्णलालजी' ने तत्त्व पिछाना रे ॥मत...८॥