स्वारथ का व्यवहार जग
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स्वारथ का व्यवहार जग में,
बिना स्वारथ कोई बात न पूछे
देखा खूब विचार ॥टेक॥
पूत कमाकर धन को लावै, माता करे प्यार
पिता कहें यह पूत सपूता, अक्कलमंद होशियार ॥स्वारथ...१॥
नारी सुंदर वस्त्राभूषण मांगत बारंबार
जो ला कर घर में नहीं देवे तो मुखड़ा देत बिगाड़ ॥स्वारथ...२॥
पूत्र भए नारी के वश में, नित्य करें तकरार
आप ही अपना माल बटाकर, होवे न्यारो नार
जिनको जानत मीत पियारे, सब मतलब के यार
ब्रह्मानन्द छोड़कर ममता, सुमरो जाननहार ॥स्वारथ...३॥