छोड़ो पर की बातें, पर की बात पुरानी ।निज-आतम से शुरू करेंगे हम तो नई कहानी ।हम आतम ज्ञानी, हम भेद विज्ञानी ॥टेक॥आओ आत्मा के आनंद की खान बतायें ।रत्नत्रय से सजा हुआ भगवान दिखायें ।निज आत्मा ही परमात्मा है, सुख की यही है रवानी ।मत कर हैरानी, तज देना दानी ॥1॥कर्म और पापों की झंझट अब तो छोड़ो ।निज की दृष्टि में मुक्ति से नाता जोड़ो ।समयसार है नियमसार है और है माँ जिनवाणी ।हम आतम ज्ञानी, हम भेद विज्ञानी ॥2॥निज प्रभुता को भूल जगत में अब तक रोये ।जिनशासन पाकर यह अवसर अब क्यों खोये ।गुण अनंत हैं सुख अनंत है आनंदमय जिंदगानी ।हम आतम ज्ञानी, हम भेद ज्ञानी ॥3॥जिन मंदिर में जाकर आतम ध्यान लगायें ।निज में निज को ध्याकर परमात्म हो जायें ।यही रीति है यही नीति है अंतिम लक्ष्य बखानी ।हम आतम ज्ञानी, हम भेद विज्ञानी ॥4॥