हे चेतन चेत जा अब तो, न अपना मान तू पर को निर्विकल्प हो जा तू, अंतर में ही खो जा तू आतम... परमातम ॥टेक॥सुना है मैंने गुरु मुख से, मुक्ति में परम सुख हैइंद्रिय सुख विनश्वर है, बंध का कारण है दु:ख हैनहीं अब दु:ख सहना है, परम सुख में ही रहना है निर्विकल्प हो जा तू, अंतर में ही खो जा तू ॥आतम... परमातम हे चेतन चेत जा अब तो, न अपना मान तू पर को ॥१॥कर्म से मित्रता करके, ज्ञान धन को लुटाया है स्वयं को भूल करके ही, निजातम को सताया हैकर्म से मित्रता तज दे, प्रीत शुद्धातम से कर लेनिर्विकल्प हो जा तू, अंतर में ही खो जा तू ॥आतम... परमातम हे चेतन चेत जा अब तो, न अपना मान तू पर को ॥२॥नहीं पर का तू है कर्ता, तेरा पर कभी न कर्ता हैभिन्न द्रव्यों की परिणतियाँ, भिन्न है आगम कहता हैहै स्वाधीन सुखमय तू, शुद्ध चिद्रूप चिन्मय तूनिर्विकल्प हो जा तू, अंतर में ही खो जा तू ॥आतम... परमातम हे चेतन चेत जा अब तो, न अपना मान तू पर को ॥३॥