अपना करना हो कल्याण, साँचे गुरुवर को पहिचान ।जिनकी वाणी में अमृत बरसता है ॥टेक॥रहते शुद्धातम में लीन, जो है विषय-कषाय विहीन ।जिनके ज्ञान में ज्ञायक झलकता है ॥1॥जिनकी वीतराग छवि प्यारी, मिथ्यातिमिर मिटावनहारी ।जिनके चरणों में चक्री भी झुकता है ॥2॥पाकर ऐसे गुरु का संग, ध्यावो ज्ञायक रूप असंग ।निज के आश्रय से ही शिव मिलता है ॥3॥अनुभव करो ज्ञान में ज्ञान, होवे ध्येय रूप का ध्यान ।फेरा भव भव का ऐसे ही मिटता है ॥4॥