अरे मोह में अब ना भरमाइयेगाघड़ी दो घड़ी आत्मा ध्याइएगा ॥दिखे जिसमें सबकुछ, न दिखता वो तुमकोन छिपता न क्षणभर है सदियों से ओझलउसे आज देखें जो देखे सभी को ॥अरे मोह में अब ना भरमाइयेगा ॥१॥प्रकाशित सदा है न डूबा कभी वोजो सबको प्रकाशे वो कैसे न दीखेअरे भ्रम को तज दे जो दिखता वही तू ॥अरे मोह में अब ना भरमाइयेगा ॥२॥है ज्ञायक सभी का स्वयं ही सदा से,है दुनियाँ झलकती स्वयं की कला से,चलो ज्ञान की इस कला को तो जानें ॥अरे मोह में अब ना भरमाइयेगा ॥३॥सदा से प्रभू है, न किंचित कमी है नहीं वो बंधा है, वो मुक्त अभी हैअरे मुक्त होंगे चलो आज हम सब ॥अरे मोह में अब ना भरमाइयेगा ॥४॥