आत्मा हूँ आत्मा हूँ आत्मा ।मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ॥टेक॥शस्त्र से भी, मैं कभी कटता नहीं ।अग्नि से भी, मैं कभी जलता नहीं ।जल गलाये तो कभी गलता नहीं ।मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ॥१॥चर्म चक्षु से कभी दिखता नहीं ।मूर्ख नर अज्ञान वश जाने नहीं ।ज्ञानियों की साध्य-साधक आत्मा ।मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ॥२॥क्रोध माया मान से भी भिन्न हूँ ।लोभ अरु रागादि से भी भिन्न हूँ ।भाव कर्मों से रहित मैं आत्मा ।मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ॥३॥गोरा काला जो भी दिखता चाम है ।मोटा पतला होना उसका काम है ।सब शरीरों से रहित मैं आत्मा ।मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ॥४॥दीप सम स्व पर प्रकाशी हूँ सदा,मात्र ज्ञाता और दृष्टा हूँ सदा ।शांत शीतल शुद्ध निर्मल आतमा,मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा ।आतमा हूँ, आतमा हूँ आतमा ॥