ओ जाग रे चेतन जाग, तुझे ध्रुवराज बुलाते हैं,तूने किससे करी है प्रीत, तुझे ध्रुवराज बुलाते हैं ॥टेक॥पर द्रव्यों में, सुख नहीं है, तज इनकी अभिलाषा,धन, शरीर, परिवार अरु बांधव, सब दु:ख की परिभाषा,तेरी दृष्टि रही विपरीत, तुझे ध्रुवराज बुलाते हैं ॥१॥स्वर्ग कभी तू, नरक कभी तू, देव तिर्यंच में गया था,मग्न रहा बाह्य क्रिया काण्ड में, ध्रुव का न आश्रय लिया था,कैसे मिलते तुझे मेरे मीत, तुझे ध्रुवराज बुलाते हैं ॥२॥अपने स्वरूप को न, ध्याया कभी भी, अपने स्वरूप में आ जा,पर के गाने गाता रहा तू, निज का आनंद कैसे पाता,प्रभु पाने की नहीं है ये रीत, तुझे ध्रुवराज बुलाते हैं ॥३॥