कंकड़ पत्थर गले लगाए हीरे को ठुकराएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया हैपुद्गल से तू रास रचाए, आतम को बिसराएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया है ॥टेक॥कुछ तो समझ तू, जाना कहाँ था, कहाँ जा रहा देवता भी तरसे जिसको, विषयों में तन को तू गंवा रहापारसमणि को हाथ में लेकर, उससे काग उड़ाएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया है ॥१॥जिस दिन खुलेगा पिंजड़ा, तेरा पखेरु उड़ जाएगा लाया था साथ क्या रे, खोले ही मुठ्ठि चला जाएगासोना चांदी महल अटारी, कुछ भी साथ न जाएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया है ॥२॥मकड़ी सरीखा बैठके, बुनता तू रहता अरे जालियाँ लेकिन नहीं है खबर, सपनों से छल-छल तेरी प्यालियाँक्या जाने कब मौत तेरे घर, डोली लेकर आएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया है ॥३॥चेतन अभी भी समय है, अंतर की अँखियों को खोल लोछोड़ रस विषयों का, अंतर में आतम रस घोल लोये मानव पर्याय है दुर्लभ, फिर हाथ न तेरे आएतुझे क्या हो गया है, तुझे क्या हो गया है ॥४॥