मात पिता परलोक गए, सुत नारि सभी परिवार नशायो ।देखत देखत लोप भयो, धन धान मकान निशान न पायो ॥राज समाज सजे गज बाज, धरे सरताज न आज रहायो।शोच प्रवीण कछु ना करो कृत पूरब कर्म मिटे न मिटायो ॥राम गए वनवास सहोदर साथ सिया संग कष्ट उठायो ।पांडु कुमार जुए मंह हार, तजे घरवार आहार न पायो ॥आनि पड़ी विपदा नल पै, हरिचन्द महत्तर हाथ बिकायो ।शोच प्रवीण कछु ना करो कृत पूरब कर्म मिटे न मिटायो ॥काहू के नौबत नाद बजै, कोई रोबत नैननि नीर बहायो।काहू के लाख करोर भरे, कोई रंक भयो कण को तरशायो ॥कोई फिरे वृहना भुवि पै, कोई शाल दुशाल दुकूल उड़ायो ।शोच प्रवीण कछु ना करो, कृत पूरब कर्म मिटे न मिटायो ॥कोई चढ़े गज बाज फिरैं, कोई धूप समै पग नांगे ही धायो ।कोई भखैं विविधामृत भोजन, कोई क्षुधातुर प्राण गमायो ॥कोउ सुता सुत पौत्र खिलावत, कोई बिना सनतान झुरायो ।शोच प्रवीण कछु ना करो कृत पूरब कर्म मिटे न मिटायो ॥