कौलो कहूँ स्वामी बतियाँ भ्रमण कीबतियाँ भ्रमण की सुन छतिया फटत है ॥टेक॥नारक दु:ख सुन छतियाँ फटत हैतिर्यञ्चनि दु:ख जैसे नदियां सावन की ॥कौलो...१॥मानुष गति में इष्ट-अनिष्ट जु,कष्ट होत जु नाहीं सहन की ॥कौलो...२॥देवन में पर-संपत्ति देखत,झाल उठे जैसे अगनी पवन की ॥कौलो...३॥चारों गति में दु:ख अनादि को, ज्ञान मांहि तुम जानों सबनकी ॥कौलो...४॥त्यारो भव-सागर से मुझको,नाव गही प्रभु तुमरे चरण की ॥कौलो...५॥