(तर्ज :- जिसमें राग-द्वेष)क्षणभंगुर जीवन है पगले, करले प्रभु का ध्यान रे,न जाने कब देह का पंछी, कर जाये प्रस्थान रे ॥टेक॥लख चौरासी में घूम-घूमकर, रतन अमोलक पाया रे,जग के क्षणभंगुर भोगों में, तूने इसे गवाया रे,अंतरंग के ज्ञान चक्षु से, कर इसकी पहचान रे ॥१॥चोटी पकड़े काल खड़ा है, पता नहीं कब खावे रे,तन का पिंजरा छोड़ के पंछी, पता नहीं कब जावे रे,अभी लगा ले नेह वीर से, करने को कल्याण रे ॥२॥तात, सुता, सुत, नारी, भगिनी, संग तेरे नहीं जावे रे,तेरी शुभाशुभ पुण्य कमाई, तेरे सभी बन जावे रे,अब तज दे तू मोह जगत से, बन के साधु महान रे ॥३॥गगन चूमने वाली बिल्डिंग, ऊंचे महल अटारी रे,अमर जानकर तूने इसमें, खोई उमरिया सारी रे,संग न जाता एक भी कंकड़, आत्म ज्ञान पहिचान रे ॥४॥