चन्द्रगुप्त राजा कहे सुनजो जी महाराजसोलह सपना देखिया जी बागा में पोड्या आज ॥उज्जैनी जी नागरी का बागाँ में भाख्या छे बाहुभद्र स्वामीजी ।चउदह जी पूरब पाठिया निमित्त ज्ञान गुरु ज्ञानीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१॥पहलो सपनो राजा देखियो टूटो कल्पवृक्ष को डालोजी ।राजाजी संयम ले नहीं दुखमो पंचम कालोजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥२॥दूजो अकारज सूरज आतियो जाको फल राय जानो जी ।जाया जी पञ्चम काल का केवलज्ञानी नहीं होसी जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥३॥तीजे चंद्रमा छेकलो जालो फल इम होसीजी ।जैनधर्म के माय में पाखण्डी घना होसी जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥४॥चौथोजी सुपनो देखियो बारहफणों नाग विकरालोजी ।थोड़ा दिनां के आंतरे पड़सी बारह बरसों कालोजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥५॥देव विमान पीछा फिर्या सुपनो पांचवो देख्योजी ।देव विद्याधर नहीं आवसी जी चारण मुनि नहीं होसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥६॥छ्ट्टोजी सपनो देखियो रोड़ी ऊपर कमल विकस्याजी ।ब्राह्मण क्षत्रिय पाले नहीं धर्म वैश्य घर होसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥७॥भूतभूताणी देख्या नाचता सपनो सातवों देख्योजी ।मिथ्यामत की मानता अधिक से अधिक होसी जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥८॥आठवों सपनो राजा देखियो आग्या को चिमकारो जी ।उद्योत होसी धर्म को बिच बिच होसी अंधियारों जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥९॥तीन दिशा का ताल सूखिया दक्षिण दिशा में पानीजी ।तीन दिशा में धर्म रहे नहीं दक्षिण में धर्म थोड़ोजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१०॥सोना की थाली में कूकरो, खीर खांड खाता देख्याजी ।ऊंच घरा लक्ष्मी रहे नहीं, नींच घरा में जासी जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥११॥हाथी ऊपर बांदरो सपनो ग्यारहवों देख्योजी ।म्लेच्छ राजा ऊंचा चढ़े सब हिन्दू नीचा होसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१२॥समुद्र मर्यादा लोपेजी सपनो बारहवों देख्योजी ।राजनीति को छोड़ के लूट प्रजा धन खासीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१३॥रथ के जी जोत्यो बाछरो सपनो तेरहवों देख्योजी ।तरुण पुरुष धर्म चलावसी वृद्धपने शीतल होसी जी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१४॥राजकंवर ऊंटां चढ्या सपनों चौदहवों देख्योजी ।बकसी की चुगली चोरटा साहूकार मन में डरसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१५॥रतन धूल से ढांकियो सपनों पन्द्रहवों देख्योजी ।पञ्चम काल विषम जती बेर परस्पर होसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१६॥बिन महावत हाथी लड़े, सपनो सोलहवों देख्योजी ।थोड़ा दिनां के आतरे मेल-भाव नहीं होसीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१७॥सोलहजी सपना की कामिनी, भाख्या छे बाहुभद्र स्वामीजी ।चउदह जी पूरब पाठिया निमित्त ज्ञान गुरु झानीजी ।चन्द्रगुप्त राजा सुनो... ॥१८॥