चेतन तूँ तिहुँ काल अकेला ,नदी नाव संजोग मिले ज्यों, त्यों कुटुम्ब का मेला ॥यह संसार असार रूप सब, ज्यों पटपेखन खेला ।सुख सम्पत्ति शरीर जल बुद बुद, विनशत नाहीं बेला ॥मोही मगन आतम गुन भूलत, पूरी तोही गल जेला ।मै-मै करत चहुंगति डोलत, बोलत जैसे छैला ॥कहत बनारसि मिथ्यामत तज, होय सुगुरु का चेला ।तास वचन परतीत आन जिय, होई सहज सुर झेला ॥