चेतो चेतन निज में आओअन्तर आत्मा बुला रही है ॥टेक॥जग में अपना कोई नहीं है, तू तो ज्ञानानंदमयी हैएक बार अपने में आजा, अपनी खबर क्यों भुला दयी है ॥१॥तन धन-जन ये कुछ नहीं तेरे, मोह में पड़कर कहता है मेरेजिनवाणी को उर में भर दे, समता में तुझे सुला रही है ॥२॥निश्चय से तू सिद्ध प्रभु सम, कर्मोदय से धारे ये तनस्याद्वाद के इस झूले में माँ जिनवाणी झुला रही है ॥३॥मोह राग और द्वेष को छोड़ो, निज स्वभाव से नाता जोड़ो ब्रह्मानंद जल्दी तुम चेतो, मृत्यु पंखा झुला रही है ॥४॥ज्ञायक हो ज्ञायक हो बस तुम, ज्ञाता दृष्टा बनकर जीवोजागो जागो अब तो चेतन, माँ जिनवाणी जगा रही है ॥५॥