जन्म-जन्म तन धरने वाले, अपने से अनजान रे ।बसे देह के देवालय में, देव तनिक पहचान रे ॥टेक॥किसी पुण्य से वैभव पाकर तू कितना मदहोश है ।मदहोशी में अति विभ्रम से करता अगिनत दोष है॥दोषों पर फिर चादर ताने दया दान सम्मान की ।पाप पले तो पुण्य व्यर्थ है चर्चा थोथे ज्ञान की॥बाहर से तो शीश महल सा अन्दर से शमशान रे ।बसे देह के देवालय में, देव तनिक पहचान रे ॥1॥चार दान के दान बहुत हैं प्रतिपल इन्द्री भोग हैं ।कठिन तपस्या से इन्द्रासन का मिलता संयोग है ॥पुण्य-भाव से मिले देव गति नर्क पशु गति पाप से ।पाप-पुण्य मिलकर मनुष्य गति पीड़ित भव संताप से ॥शुद्धातम की शरण तरुण-तारण उसको पहचान रे ।बसे देह के देवालय में, देव तनिक पहचान रे ॥2॥तीरथ-तीरथ भटका पाया द्वार नहीं शिवधाम का ।नयन मूँदकर ध्यान किया कब अपने आतम राम का ॥जग प्रपंच यह निज वैभव के कुशल लुटेरे जान लो ।कृत्रिम कर्माधीन देह भी साथ न देगी जान लो ॥तू अभेद अविनाशी अपना जगा भेद-विज्ञान रे ।बसे देह के देवालय में देव तनिक पहचान रे ॥3॥