जब चले आत्माराम, छोड धन-धाम, जगत से भाईजग में न कोई सहायी ॥तू क्यों करता तेरा मेरा, नहीं दुनिया में कोई तेराजब काल आय तब सबसे होय जुदाई, जग में न कोई सहायी ॥तू मोहजाल में फ़ंसा हुआ, पापों के रंग में रंगा हुआजिन्दगानी तूने वृथा यों जी गवाई, जग में न कोई सहायी ॥सम्यक्त्व सुधा का पान करो, निज आतम ही का ज्ञान करोयूं टले जीव से लगी कर्म की काई, जग में न कोई सहायी ॥चेतो चेतो अब बढे चलो, सतपथ सुमार्ग पर बढे चलोयूं बाज रही यमराजा की शहनाई, जग में न कोई सहायी ॥