जाना नहीं निज आत्मा, ज्ञानी हुए तो क्या हुए ।ध्याया नहीं निज आत्मा, ध्यानी हुए तो क्या हुए ॥टेक॥श्रुत सिद्धांत पढ़ लिए, शास्त्रवान बन गए ।आतम रहा बहिरात्मा, पंडित हुए तो क्या हुए ॥१॥पंच महाव्रत आदरे, घोर तपस्या भी करे ।मन की कषायें ना गईं, साधु हुए तो क्या हुए ॥२॥माला के दाने फेरते, मनुवा फिरे बाजार में ।मनका न मन से फेरते, जपिया हुए तो क्या हुए ॥३॥गा के बजा के नाचके, पूजन भजन सदा किए ।भगवन् हृदय में ना बसे, पुजारी हुए तो क्या हुए ॥४॥करते न जिनवर दर्श को, खाते सदा अभक्ष्य को ।दिल में जरा दया नहीं, मानव हुए तो क्या हुए ॥५॥मान बड़ाई कारणे, द्रव्य हजारों खर्चते ।घर के तो भाई भूखन मरे, दानी हुए तो क्या हुए ॥६॥रात्रि न भोजन त्यागते, पानी न पीते छान के ।छोड़े नहीं दुर्व्यसन को, जैनी हुए तो क्या हुए ॥७॥औगुण पराए हेरते, दृष्टि न अंतर फेरते ।शिवराम एक ही नाम के शायर हुए तो क्या हुए ॥८॥