जिया कब तक उलझेगा संसार विकल्पों मेकितने भव बीत चुके, संकल्प विकल्पों में ॥टेक॥उड उड कर यह चेतन, गति गति में जाता हैभोगों में लिप्त सदा भव भव दुख पाता है ॥निज तो न सुहाता है, पर ही मन भाता हैये जीवन बीत रहा, झूंठे संकल्पों में ॥१ जिया.॥तू कौन कहां का है और क्या है नाम अरेआया किस गांव से है, जाना किस गांव अरे ॥यह तन तो पुद्गल है, दो दिन का ठाठ अरे अन्तर मुख हो जा तू, तो सुख अति कल्पों में ॥२ जिया.॥यदि अवसर चूका तो, भव भव पछतायेगायह नर भव कठिन महा, किस गति में जायेगा ॥ नर भव पाया भी तो, जिन कुल नहीं पायेगाअनगिनत जन्मों में,अनगिनत विकल्पों में ॥३ जिया.॥