ज्ञानी का धन ज्ञान जगत में ॥टेक॥पाप ना भाये, पुण्य ना भायेनित्य निरंजन रूप रमावेचक्रवर्ती की संपत्ति भी गरमिले तो धूल समान ॥जगत में, ज्ञानी का धन ज्ञान ॥१॥तीव्र उदय तदरूप बनेघोर दुख सुख सहे घनेफिर भी पर को पर ही जाने सुवरण अग्नि समान ॥जगत में, ज्ञानी का धन ज्ञान ॥२॥ज्ञान बिना तो स्वर्ग बला है ज्ञान होय तो नरक भला हैकरम मैल को चूर करन कोज्ञान ही वज्र समान ॥जगत में, ज्ञानी का धन ज्ञान ॥३॥ज्ञान को धारे ज्ञान का धारीज्यों सिर गगर धरे पनिहारीचंचल चाल करे बहु बातेंचन्द्र गगर पर ध्यान ॥जगत में, ज्ञानी का धन ज्ञान ॥४॥