तू जाग रे चेतन देव तुझे जिनदेव जगाते हैंतेरे अंदर में आनन्द के गीत तुझे संगीत न भाते हैं ॥परपद अपद है, परपद अपद है तुझको न शोभा देताअपने ही रंग में, अपनी ही धुन में रम जा तू संतों ने घेरातेरी महिमा अगम अनूप, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥१॥इस पल भी जीना, निज बल पे जीना, शोभावे सन्मुख ही जीनादो दिन का मेला फ़िर तू अकेला कोई है जग का कहीं नासुन समयसार संगीत तुझे जिनदेव सुनाते हैं ॥२॥चैतन्य रस में, आनन्द के रस में, शान्ति के रस में नहालेप्रभुता के रस में, भीरुता के रस में, वैराग्य रस में मजा लेफ़िर सब गावें तेरे गीत, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥३॥