थोड़ा सा उपकार करजीवन को पहचान ए मानव, सब जीवों से प्यार कर ।भव-सागर से तर जाएगा, थोड़ा सा उपकार कर ॥टेक॥दीन दुखी जो मिले राह में, उसका कष्ट निवार तू ।जितना भी हो सके तू दे, तन मन धन का प्यार तू ।रत्न अमोल है जीवन तेरा, मत इसको बेकार कर ॥भव...१॥राग-द्वेष को मार तू ठोकर, क्रोध मान को छोड़ दे ।मन से अपना बसा पुराना, लोभ का रिश्ता तोड़ दे ।जो भी आए दर पर तेरे, उसका तू सत्कार कर ॥भव...२॥झूठी है यह दुनियाँ सारी, झूठी सारी माया है ।पल भर का है सपना तेरा, झूठी तेरी काया है ।झूठ छोड़कर सच अपना ले, केवल सच से प्यार कर ॥भव...३॥सत्य पथ पर चला जो राही, उसका तो उद्धार हुआ ।क्षमा मयी जो हुआ विश्व में, उसका बेड़ा पार हुआ ।बन सकता है वह तीर्थंकर, चले जो जीवन संवार कर ॥भव...४॥लेकर जिनवाणी का सहारा, जिसने मन चमकाया है ।सप्त व्यसन को त्यागा जिसने, कभी न वह घबराया है ।जन्म मरण बंधन से छूटा, पहुंचा मोक्ष द्वार पर ॥भव...५॥जैसा जिसने कर्म किया है, वैसा ही फल पाया है ।आलस करने वाला जग में, भूखा मारता आया है ।जीवन की अंतिम घड़ियों में, यही करेगा हार कर ।जीवन को पहचान हे मानव, अब जीवों से प्यार कर ॥भव...६॥