राजा लोभी राज करन्ता पंडित भया रे भिखारी,पापी पाखाण्डी ने मिश्री का मेवा तो साधु ने भोजन भारी ।देखोजी प्रभु ! करमन की गति न्यारी ।मैं तो अरज करत कर हारी ॥टेक॥वेश्या ओढ़े शाल दुशाला, पतिव्रता नार उघाड़ी ।सुख भर नारी, पुत्र बिन झूरे, तो मूरख जन जन हारी ॥देखोजी प्रभु करमन की गति न्यारी ॥१॥कागद लेके गोखरा बैठे, लेख लिखा सोई होसी ।कलम पकड़ हाथ बिच लीनी, तो हो गया लेख हमारा ॥देखोजी प्रभु करमन की गति न्यारी ॥२॥गंगा नीर समुद्र जल पानी, पीवो समुद्र जल खारी ।उजलो वरन बगुला सो दीखे तो कोयल पड़ गई कारी ॥देखोजी प्रभु करमन की गति न्यारी ॥३॥गरब कियो रत्नागर सागर, जाका हुआ नीर खारा ।गरब कियो डूंगर की चिरमी तो हो गहया मुखड़ा कारा ॥देखोजी प्रभु करमन की गति न्यारी ।मैं तो अरज करत कर हारी ॥४॥