धरम बिना बावरे तूने, मानव रतन गँवाया।। टेक।।कभी न कीना आत्म निरीक्षण, कभी न निज गुण गाया।पर परणति से प्रीति बढ़ाकर, काल अनंत बढ़ाया।।१।।यह संसार पुण्य-पापों का, पुण्य देख ललचाया।दो हजार सागर के पीछे, काम नहीं यह आया ।। २।।यह संसार भव समुन्दर है, बन विषयी हरषाया।ज्ञानी जन तो पार उतर गये, मूरख रुदन मचाया।। ३ ।।यह संसार ज्ञेय द्रव्य है, आतम ज्ञायक गाया।कर्ता बुद्धि छोड़ दे चेतन, नहि तो फिर पछताया ।।४।।यह संसार दृष्टि की माया , अपना कर अपनाया। "केवल" दृष्टि सम्यक् कर ले, जिनवर ने समझाया।।५।।