परिग्रह डोरी से, झूठ और चोरी से ।पापी बने ऐ हजूर, अरे बंधन है कर्म का ॥टेक॥परनारी परधन पर क्यूँ मन को लुभाया ।भोगों पे ललचाया तो दुखड़े उठाया ।पाएगा रे सजा, तू पाप भार का ॥१...परिग्रह॥देखो तुम जो आए क्या करतब है तुम्हाराइन्सां बनके देखो दो दीनों को सहारापाएगा रे दुआ, दीनों के प्यार का ॥२...परिग्रह॥तेरी दीन बनी है आतम, उसको तू पहचान ले इसकी शक्ति कितनी, इसको तू अब जान लेपाएगा मोक्ष को, छुटे संसार भार से ॥परिग्रह डोरी से, झूठ और चोरी सेपापी बने ऐ हजूर, अरे बंधन है कर्म का ॥३॥