(तर्ज :- दे दी हमें आजादी,दिन रात मेरे स्वामि)प्रभु शांत छवि तेरी, अन्तर में समाई,प्रत्यक्ष देखि मूरत, शांति हृदय में छाई ॥टेक॥शुभ ज्ञान ज्योति जागी, आतम स्वरूप जाना,प्रत्यक्ष आज देखा, चैतन्य का खजाना,जो दृष्टि पर में भ्रमती, वह लौट निज में आई ॥प्रत्यक्ष...१॥अक्षय निधि को पाने, चरणों में प्रभु के आया,पर प्रभु ने मूक रहकर, मुझको भी प्रभु बताया,अन्तर में प्रभुता मेरे, निश्चय प्रतीति आई ॥प्रत्यक्ष...२॥सर्वोत्कृष्ट निज प्रभु, तजकर कहीं ना जाऊं,जिन बहुत धक्के खाये, विश्राम निज में पाऊं,हो नमन कोटीश: प्रभु, शिव सुख डगर बताई ॥प्रत्यक्ष...३॥